गुरु अमर दास जी

गुरु अमर दास जी

 

महत्वपूर्ण जानकारी

 

=> गुरु अमर दास जी सिख धर्म के तीसरे गुरु थे।

=> गुरु अमर दास जी का जन्म 5 मई, 1479 में  “गॉंव बासरके गिलां, जिला अमृतसर, पंजाब ( भारत )” में हुआ था। यह गॉंव छेहरटा-बाबा बूढ़ा जी रोड पर अमृतसर से 13 कि.मी. दूरी पर है। जिस घर में गुरु अमर दास जी का जन्म हुआ। वहाँ पर अब “गुरुद्वारा जन्म स्थान गुरु अमर दास जी” बना हुआ है।

गुरुद्वारा जन्म स्थान गुरु अमर दास जी
गुरुद्वारा जन्म स्थान गुरु अमर दास जी, गॉंव बासरके गिलां, अमृतसर

=> गुरु अमर दास जी के पिता का नाम तेजभान और माता का नाम लखमी था। माता को बख्त कौर/लखमी देवी/रूप कौर के नामों से भी जाना जाता है।

=> तेजभान जी के चार पुत्रों ( अमर दास, ईश्वर दास, खेमराय और माणकचंद ) में गुरु जी सबसे बड़े थे।

=> गुरु जी का परिवार “भल्ला खत्री” थे।

=> 8 जनवरी, 1503 में गुरु अमर दास जी का विवाह पाकिस्तान में सियालकोट के पास जिला नरोवाल के गाँव “सांखत्रा” के “देवी चंद” “बहिल खत्री” की लड़की रामकौर/रामो/मनसा देवी से हुई। गाँव सांखत्रा, नरोवाल से 18 कि.मी. दूर और करतारपुर से 20 कि.मी. पश्चिम में स्थित है।

=> गुरु अमर दास जी और माता रामकौर जी (मनसा देवी) के घर दो पुत्र व दो पुत्रियां का जन्म हुआ। (1) बीबी दानी (1530) (2) बीबी भानी (1535) (3) भाई मोहन (1536) और (4) भाई मोहरी (1539)

=> 1520 में 41 साल की उम्र में गुरु जी ने पहली बार गंगा की यात्रा के लिए हरिद्वार गए। उसके बाद गुरु जी ने हर साल लगातार 21 बार गंगा जी के दर्शन के लिए हरिद्वार की यात्रा की।

=> 1539 में गंगा जी की 20वीं यात्रा करके जब गुरु अमर दास जी हरिद्वार से पंजाब लोट रहे थे। तब रास्ते में गाँव “मिहड़ा ( थेहड़ा )” के पंडित “दुर्गादत्त ( दुर्गादास )” के बाग़ में कुछ समय के लिए रुके। यही पर एक ब्रह्मचारी साधु से मुलाकात हुई। साधु ने अमर दास जी को सच्चा गुरु ढूंढने के लिए कहा।

=> अमर दास जी गुरु अंगद देव जी की पुत्री “बीबी अमरो” के चाचा ससुर थे। बीबी अमरो के पति का नाम “सावणमल” था।

=> एक दिन बीबी अमरो सुबह-सुबह भजन गा रही थी। जब अमर दास जी ने बीबी अमरो को पूछा की यह भजन किसके है तो उन्होंने कहा की पिता जी के है। तब अमर दास जी ने बीबी अमरो को उनके पिता जी से मिलवाने को कहा।

=> 1539 में 60 साल की उम्र में पहली बार अमर दास जी की मुलाकात खंडूर साहिब में गुरु अंगद देव जी से हुई। और अमर दास जी ने गुरु अंगद देव जी को अपना गुरु मान लिया। तथा वहीं रह कर उनकी दिन-रात सेवा करने लग गए।

गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब ( अंगीठा साहिब )
गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब ( अंगीठा साहिब ) खंडूर साहिब, पंजाब

=> 1539 तक गुरु जी गाँव बासरके गिलां में खेती और अनाज का व्यापार करते थे। और वे प्रारम्भ में वैष्णव भक्त थे।

=> 1546 में “गोइंदा या गोंडा” नामक “मारवाह खत्री” ने गुरु अंगद देव जी से ब्यास नदी के पश्चिम तट पर गाँव आबाद करने का आग्रह किया। गुरु जी ने अपने प्रिय शिष्य “अमर दास जी” को वहीं रहकर गाँव को आबाद करने का काम सौंपा। गोइंदा/गोंडा नामक व्यापारी के नाम पर ही इस गाँव का नाम “गोइंदवाल” रखा गया।

=> अमर दास जी ने 1539 से लेकर 1552 तक लगभग 12-13 साल गुरु अंगद देव जी की सेवा में पूर्ण समर्पण के साथ कार्य किया। अमर दास जी खडूर साहिब में रहने लगे और विभिन्न कार्यों, जैसे पानी लाना, लंगर की सेवा, और संगत की देखभाल, में सक्रिय रूप से भाग लिया। उनकी निस्वार्थ सेवा और भक्ति ने गुरु अंगद को बहुत प्रभावित किया। इससे, वे सिख शिक्षाओं को गहराई से आत्मसात करते रहे और सिख संगत में एक सम्मानित व्यक्ति बन गए।

=> गोइंदवाल से 2.5 कि.मी. दूर खंडूर साहिब रोड पर हंसवाला गाँव के पास “गुरुद्वारा दमदमा साहिब पातशाही तीजी” बना हुआ है। यहाँ पर अमर दास जी अपने गुरु अंगद देव जी के स्नान के लिए हर रोज ब्यास नदी से पानी ले जाते समय एक करीर के पेड़ के नीचे आराम किया करते थे। वह करीर का पेड़ 500 साल बाद आज भी वहाँ पर है।

=> 26 मार्च, 1552 को गुरु अंगद देव जी ने अपने प्रिय शिष्य भाई “अमर दास जी” को अपना उत्तराधिकारी गुरु बनाया। और 5 पैसे व नारियल रखकर गुरु अमर दास जी के सामने माथा टेका (सर झुकाया)। 73 साल की उम्र में अमर दास जी गुरु बने।

=> गुरु बनने के बाद गुरु अमर दास जी जी गोइंदवाल चले गए।

=> 1552 में गुरु अमर दास जी ने गोइंदवाल की स्थापना की।

=> 1552 में गुरु अमर दास जी को गोइंदवाल में गए अभी कुछ ही दिन हुए थे, की गुरु अंगद देव जी के छोटे दातू ने उनके गुरु बनने का विरोध किया। और गोइंदवाल जाकर गुरु अमर दास जी को लात मारकर मंच से नीचे गिरा दिया। गुरु जी ने खड़े होकर बेहद विनम्रता से कहा ” महाराज, मुझे माफ़ करें, मेरी कठोर हड्डियों से आपके कोमल पैरों को चोट लग सकती है।”

=> गुरु जी गोइंदवाल से अपने पैतृक गाँव “बासरके गिलां” आ गए।गाँव के बाहर एक घर में खुद को बंद करके अंदर तपस्या करने लग गए। और गेट पर लिख दिया “जो कोई भी इस दरवाजे को खोलता है, वह मेरा कोई सिख नहीं है, न ही मैं उसका गुरु हुँ।” आख़िरकार बाबा बूढ़ा जी के नेतृत्व में दीवार में एक छेद करने का फैसला किया ताकि गुरु के निर्देश के खिलाफ न जाया जा सके। बाबा बूढ़ा जी के आग्रह पर गुरु अमर दास जी फिर से गोइंदवाल आ गए।

=> जिस जगह पर बाबा बूढ़ा जी ने दीवार में छेद किया था, वहाँ पर अब “गुरुद्वारा सन्न साहिब” बना हुआ है।

गुरुद्वारा सन्न साहिब, गॉंव बासरके गिलां, अमृतसर
गुरुद्वारा सन्न साहिब, गॉंव बासरके गिलां, अमृतसर

=> गोइंदवाल में चौबारा साहिब के पास गुरु अमर दास जी ने खूह खुदवाया जिसकी गहराई लगभग 65-70 फुट है। और उसमें से निर्मल जल निकाल कर आज भी प्रयोग में लिया जाता है। यहाँ पर “गुरुद्वारा खूह साहिब” बना हुआ है।

=> 1552 में गुरु अमर दास जी ने नानक धर्म की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार के लिए मंजी और पीरी प्रणाली की स्थापना की। 22 मंजियां ( प्रांतों ) स्थापित की और 52 पीरीयां ( महिलाओं के लिए प्रचार-प्रसार केंद्र ) स्थापित की।

=> हर मंजी ( प्रान्त ) में एक उपदेशक ( मंजी अधिश ) को नियुक्ति किया। 22 मंजी उपदेशक निम्न है:-

(1) पारो जुल्का (2) लालू बुधू (3) महेश धीर (4) माईदास (5) माणक दास (6) सावण मल्ल (7) मल (8) बाबा हंदाल (9) सच्चन सच्च (10) गंगू खत्री (11) सधारन लुहार (12) मथो मुरारी (13) खेडा ब्रह्मण (14) फिरिया (15) कटारा (16) साईदास (17) दिते के भल्ले (18) माई सेवाँ (19) दुर्गा पंडित (20) जीत बंगाली (21) बीबी भागों (22) बलू नाई।

=> उक्त मंजी-अधिशों ( मंजीदारों ) द्वारा किए जाने वाले क्षेत्रीय समागमों के अतिरिक्त गुरु अमर दास जी ने हर साल वैशाखी पर गोइंदवाल में महासमागम करने की व्यवस्था भी की और पहला महासमागम 1568 की वैशाखी को गोइंदवाल में किया गया।

=> भाई फिरिया और विदारा दोनों गोरखनाथ पंथ के थे। गुरु अमर दास जी से मिलने के बाद जंतर-मंतर के सारे पाखंड छोड़ दिए। भाई फिरिया को तो गुरु जी ने मंजीदार ( उपदेशक ) भी बनाया।

=> 1554 में गुरु अमर दास जी ने अपने पुत्र मोहरी के घर में पुत्रोत्पत्ति के अवसर पर “आनंद साहिब” की रचना की। और अपने पौत्र का नाम भी “आंनद” रखा। आंनद साहिब में 40 श्लोक है। 39वाँ श्लोक चौथे गुरु राम दास जी का है। व 40वाँ श्लोक पंचम गुरु अर्जुन देव जी का है।

=> 1558 में गुरु अमर दास जी ने गोइंदवाल में 84 सीढ़ियों वाली अष्टकोणीय बाउली बनवाई। और यह 84 सीढ़ियाँ हैं जो पानी के स्तर तक जाती हैं। यहीं पर गोइंदवाल का सबसे बड़ा “गुरुद्वारा बाउली साहिब” बना हुआ है।

गुरुद्वारा बाउली साहिब, गोइंदवाल, पंजाब
गुरुद्वारा बाउली साहिब, गोइंदवाल, पंजाब

=> 1569 में मुग़ल बादशाह अकबर गुरु जी बढ़ती प्रसिद्धि से प्रभावित होकर गुरु जी से मिलने गोइंदवाल आये। बादशाह अकबर ने गुरु अमरदास जी और उनके अनुयायिओं पर यमुना और गंगा नदी को पार करते समय गैर-मुसलमानों के लिए लगने वाला “पिलग्रिम टैक्स ( तीर्थ यात्रा कर ) माफ़ कर दिया।

=> गुरु अमर दास जी ने अमृतसर की कल्पना की।

=> 1569 में गुरु जी की धर्म पत्नी माता राम कौर ( मनसा देवी ) का देहांत गोइंदवाल में हुआ।

=> सिखों का पहला मेला 1571 में गोइंदवाल में भरा।

=> गुरु अमर दास जी ने विधवा विवाह के साथ-साथ अंतर-जातिय विवाहों को भी बढ़ावा दिया।

=> गुरु जी ने पर्दा (घूंघट) प्रथा को त्यागने के लिए कहा।

=> गुरु अमर दास जी ने सती प्रथा का प्रबध विरोध किया। गुरु जी द्वारा रचित “वार सुही” में भी सती प्रथा का विरोध किया गया है। सती प्रथा के विरोध के लिए तो गुरु जी ने हरिद्वार में जाकर तप भी किया। जिस घाट पर तप किया था उस घाट को अब “सतीघाट” कहा जाता है। यहाँ पर गुरु जी ने तप किया वहाँ पर “गुरुद्वारा तपस्थान तीसरी पातशाही गुरु अमर दास जी” बना हुआ है। यह गुरुद्वारा सतीघाट, कनखल, हरिद्वार में है।

=> गुरु अमर दास जी ने “पहले पंगत फिर संगत” की प्रथा चलाई। गुरु जी के समय तक गुरु का लंगर में लंगर छकने या भोजन करने के लिए अलग-अलग जातिओं की संगत ( लोग ) के लिए अलग-अलग पंगत ( लाईन ) लगानी पड़ती थी। लेकिन गुरु जी ने सभी संगत ( लोगों ) को एक ही पंगत ( लाईन ) में बैठकर लंगर छकना या भोजन करना अनिवार्य कर दिया।

=> “गुरुद्वारा श्री चौबारा साहिब पातशाही तीसरी”, गोइंदवाल साहिब, जिला तरनतारन, पंजाब में स्थित है। सिख इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं का केंद्र रहा है। जो निम्न है:- 

  1. गोइंदवाल में चौबारा साहिब गुरु अमर दास जी का निवास स्थान है।
  2. चौबारा साहिब वह स्थान है यहाँ पर सिख दुनिया की एकमात्र महिला ( स्त्री ) बीबी भानी जी रहती थी। जिसे गुरु पुत्री, गुरु पत्नी और गुरु माता बनने का सोभाग्य प्राप्त हुआ। 
  3. यहीं पर गुरु अमर दास जी का तपोस्थान भी है। यहाँ पर गुरु जी तप किया करते थे।
  4. चौबारा साहिब में ही अपने वृद्ध पिता गुरु अमर दास जी को स्नान करवाते समय बीबी भानी जी ने गुरु जी से अपने वंश के लिए गुरु गद्दी का वरदान माँगा।
  5. चौबारा साहिब में ही किली साहिब जगह है। यहाँ पर वृध्द अवस्था में गुरु जी तप करते समय किली का सहारा लेते थे।
  6. गुरु अमर दास जी ने इसी स्थान पर 1574 को भाई जेठा जी ( गुरु राम दास जी ) को गुरु गद्दी का तिलक बाबा बूढ़ा जी द्वारा करवाया।
  7. चौबारा साहिब में ही गुरु अमर दास जी ने 22 मन्जिओं की स्थापना की थी।
  8. गुरु अमर दास जी और गुरु राम दास जी के ज्योति जोत ( समाधि स्थल ) का स्थान यहीं पर है।
  9. यही पर बीबी भानी जी का चौका-चुल्ला स्थान “पावन थम” स्थान है।
  10. गुरु अर्जुन देव जी का जन्म स्थान और यहाँ गुरु अर्जुन देव जी बचपन में खेला करते थे वह स्थान भी चौबारा साहिब में ही है।
  11. चौबारा साहिब में गुरु अमर दास जी के पवित्र केश व चौला आज भी रखे हुए है।
  12. चौबारा साहिब में गुरु अमर दास जी ने गोविंदपुरी की संगत को तईया बुखार से मुक्ति दिलाई।
  13. चौबारा साहिब में “बाबा मोहन जी का चौबारा” है। इस स्थान पर गुरु अमर दास जी के बड़े सुपुत्र बाबा मोहन जी तप व सतगुरु का सिमरन किया करते थे। और बाबा मोहन जी ने यहीं पर गुरु अर्जुन देव जी को गुरु वाणी की पोथियाँ भेंट की थी।
  14. चौबारा साहिब में गुरु अर्जन देव जी की “पालकी साहिब” आज भी है। इस पालकी साहिब में गुरु अर्जुन देव जी, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी (पहले चार गुरु साहिबों की वाणी का संकलन) को श्री हरिमदिर साहिब तक ले गए।
गुरुद्वारा श्री चौबारा साहिब पातशाही तीसरी”, गोइंदवाल साहिब
गुरुद्वारा श्री चौबारा साहिब पातशाही तीसरी”, गोइंदवाल साहिब

=> गुरु अमर दास जी ने 1 सितम्बर, 1574 को गोइंदवाल में अपने दामाद व बीबी भानी जी के पति भाई जेठा जी ( गुरु राम दास जी ) को बाबा बूढ़ा जी द्वारा तिलक लगवाकर गुरु गद्दी प्रदान की। भाई जेठा जी गुरु राम दास जी के नाम के साथ सिखों के चौथे सिख गुरु बने।

=> 1 सितम्बर, 1574 को ही गोइंदवाल में 95 साल की उम्र में गुरु अमर दास जी का देहांत हो गया।

=> गुरु अमर दास जी 22 साल 5 महीने 6 दिन तक गुरु गद्दी पर आसीन रहे।

=> श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में गुरु अमर दास जी की वाणी के “907 श्लोक ( भजन )” 17 रागों में अंकित है। गुरु अमर दास जी की सबसे महत्वपूर्ण वाणी “आंनद साहिब” की वाणी है। जो की गुरु ग्रंथ साहिब में “रामकली राग” में “अंग 917 से अंग 922” पर आती है। आंनद साहिब नित नेम की पाँच प्रमुख वाणीओं में से एक है

 

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