गुरु अंगद देव जी ​

गुरु अंगद देव जी

 

महत्वपूर्ण जानकारी

 

=> गुरु अंगद देव जी सिख धर्म के दूसरे गुरु थे।

=> गुरु अंगद देव जी का जन्म 31 मार्च, 1504 में  गॉंव सरायनागा ( मत्ते दी सराय ) जिला श्री मुक्तसर साहिब, पंजाब ( भारत ) में हुआ था। यह गॉंव मुक्तसर-कोट कपुरा रोड पर श्री मुक्तसर साहिब से 15 कि.मी. दूरी पर है। जिस घर में गुरु अंगद देव जी का जन्म हुआ। वहाँ पर अब “गुरुद्वारा जन्म स्थान पादशाही दूजी” बना हुआ है।

गुरु अंगद देव जी
गुरुद्वारा जन्म स्थान पादशाही दूजी, मत्ते दी सराय, श्री मुक्तसर साहिब

=> गुरु जी के पिता का नाम फेरु मल्ल और माता का नाम माता रामो था। माता को रामो/सुभराई देवी/दया कौर/मनसा देवी के नामों से भी जाना जाता है।

=> फेरु मल्ल जी का पैतृक गॉंव “मंगोवाल, गुजरात शहर” ( पाकिस्तान ) है। यह गॉंव गुजरात शहर से 22 कि.मी. दूर गुजरात-फलिया रोड पर है। यहाँ पर गेहनू मल्ल जी के घर चार बेटों में से तीसरे नंबर पर फेरु मल्ल जी का जन्म हुआ। फेरु मल्ल जी छोटी सी उम्र में ही अपने ननिहाल “मत्ते दी सराय, श्री मुक्तसर साहिब” में आ गए थे। यही उनकी पढाई-लिखाई हुयी और यही उनका विवाह हुआ।

=> गुरु अंगद देव जी का वास्तविक नाम “लहणा” था। जिसे गुरुगद्दी देते समय गुरु नानक देव जी ने बदल कर “अंगद” रख दिया था। उसके बाद लहणा को गुरु अंगद देव जी के नाम से ही जाना जाता है।

=> गुरु जी का परिवार “त्रेहन खत्री” था।

=> फेरु मल्ल का परिवार हर साल ज्वालामुखी शक्ति पीठ , हिमाचल प्रदेश की तीर्थ यात्रा जरूर करता था।

=> फेरु मल्ल जी मत्ते दी सराय के स्थानीय जमींदार चौधरी तख्त मल्ल के यहां एकाउंटेंट ( पटवारी ) के तौर पर नौकरी करते थे।

=> 1519 में फेरु मल्ल जी का हिसाब-किताब की गड़बड़ी को लेकर तख़्त मल्ल से विवाद हो गया। जिसके कारण तख़्त मल्ल ने फेरु मल्ल जी को जेल में डाल दिया। तख़्त मल्ल की बेटी सतभई/भराई जी की मदद से जेल से बाहर निकले। जिन्हे फेरु मल्ल अपनी धर्म बहन मानते थे। 7  भाईओं की एकलौती बहन होने के कारण इसका नाम सतभई रखा गया था। इसे भराई जी भी कहा जाता था। और भराई जी गुरु नानक देव जी की अनुयायी थी।

 => 1520 के शुरुआत में बाबर के आक्रमणों और लूट-पाट से परेशान होकर फेरू मल्ल अपने परिवार को लेकर अमृतसर के पास खंडूर चले गए। जो अब श्री खंडूर साहिब के नाम से जाना जाता हे। यहाँ उन्हें बसने में उनकी मदद माता भराई/सतभई जी ने की। खंडूर साहिब में जिस घर में माता सतभई/भराई जी रहती थी वहाँ पर “गुरुद्वारा माई भराई साहिब” बना हुआ है।

गुरुद्वारा माई भराई साहिब
गुरुद्वारा माई भराई साहिब, श्री खंडूर साहिब

=> इसी माता भराई/सतभई जी ने भाई लहणा जी की शादी “बीबी खीवी” से करवाई।

=> जनवरी 1520 में गुरु अंगद देव जी का विवाह खडूर साहिब के पास “गॉंव संघर कोट” के साहूकार “देवीचंद जी” व “माता करण देवी” की पुत्री “माता खीवी” से हुई। जो की “मरवाहा खत्री” थे।

=> गॉंव संघर कोट के जिस घर में माता खीवी जी का जन्म हुआ, वहाँ पर वर्तमान में “गुरुद्वारा माता खीवी जी” बना हुआ है।

=> भाई लहणा जी और माता खीवी जी के घर दो पुत्र व दो पुत्रियां का जन्म हुआ। (1) बाबा दासू जी (1524) (2) बीबी अमरो जी (1532) (3) बीबी अनोखी जी (1534) और (4) बाबा दातू जी (1537)।

=> 1526 में फेरु मल्ल जी ज्वालामुखी के दर्शन करके लौटते समय खंडूर साहिब के पास “संघर कोट” गॉंव में बीमार पड़ गए और यहीं पर उनका देहांत हो गया।

=> 1532 में “भाई जोधा जी” से गुरु नानक देव जी के शब्द ( भजन ) सुनकर भाई लहणा जी ने गुरु नानक देव जी से मिलने के लिए करतारपुर गए। और गुरु नानक देव जी के विचारों को सुनकर हमेशा के लिए सिख धर्म के अनुयायी बन गए। और करतारपुर में बस गए।

=> 1532 तक गुरु नानक देव जी से मिलने से पहले गुरु अंगद देव जी माता दुर्गा की पूजा करते थे।

=> 1532 से लेकर 1539 तक सात वर्षों तक भाई लहिणा जी ने बड़े समर्पित भाव से गुरु नानक देव जी की सेवा की। बेहद संपन्न परिवार के होने के बावजूद वे लंगर के लिए पानी ढोना, लकड़ी चीरना, पंखा झलना, खेती करना इत्यादि कार्य करते थे।

=> 1539 में गुरु नानक देव जी द्वारा जो 7 परीक्षाएं ली गयी जिन्हे पास करके भाई लहणा जी सिखों के दूसरे गुरु बने वो निम्न है:-

=> पहली परीक्षा में गुरु नानक देव जी ने कीचड़ के ढेर में पड़ी घास-फूस की गठरी सिर पर उठाने के लिए कहा। जिसे भाई लहणे ने गुरु की आज्ञा मान कर तुरंत उठा लिया।

=> दूसरी परीक्षा में गुरु नानक देव जी ने एक धर्मशाला में मरी हुई चुहिया उठाकर इन सभी से बाहर फेंकने के लिए कहा था। तब का समय ऐसा था कि ऐसा काम सिर्फ शूद्र किया करते थे। इसके बावजूद जात-पात की परवाह किए बिना भाई लहणे ने चुहिया उठाकर बाहर फेंक दी थी।

=> तीसरी परीक्षा में गुरु नानक देव जी ने मैले ( कीचड़ ) में से कटोरा निकालने के लिए कहा। इसे भी भाई लहणे ने बिना किसी संकोच के कटोरा निकाल दिया।

=> चौथी परीक्षा में गुरु नानक देव जी ने भीषण सर्दी के दौरान आधी रात को धर्मशाला की टूटी दीवार बनाने का हुक्म दिया। जिसे बनाने के लिए तुरंत भाई लहणा जी चले गए।

=> पांचवीं परीक्षा में गुरु नानक देव जी ने एक और सर्दी की रात में सबको रावी नदी के किनारे जाकर कपड़े धुलने के लिए कहा। भाई लहणा जी सबसे पहले कपडे धोने चले गए।

=> छठवीं बार गुरु नानक देव जी ने सिर्फ भाई लहणे की ही परीक्षा ली। उन्होंने एक रात पूछा कि कितनी रात बीत चुकी है। तब भाई लहणे ने उत्तर दिया कि परमेश्वर की जितनी रात बीतनी थी, वो तो बीत गई। अब जितनी बाकी रहनी चाहिए, उतनी ही रात बची है।

=> सातवीं परीक्षा में गुरु नानक देव जी ने शमशान में मुर्दा खाने के लिए कहा। भाई लहणा जी तुरंत तैयार हो गए।

=> इन 7 परीक्षाओं से गुरु नानक देव जी सेवा और समर्पण, धैर्य, आत्म नियंत्रण, आत्म समर्पण, अहंकार का त्याग, सच्चाई और ईमानदारी व सद्भाव। इन 7 मानवीय व्यवहारों का पता करना चाहते थे। ये सभी गुण भाई लहणा जी में थी।

=> 7 सितम्बर, 1539 को गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी को अपना उत्तराधिकारी बनाया। और उसका नाम बदल कर “अंगद” रख दिया।

=> 22 सितम्बर, 1539 में गुरु नानक देव जी के देहांत के बाद गुरु अंगद देव जी खंडूर साहिब चले आये और एकांत में चले गए और 6 महीनों तक ध्यान लगाया। खंडूर साहिब में जिस जगह पर गुरु अंगद देव जी ने ध्यान लगाया था वहाँ पर “गुरुद्वारा तप अस्थान श्री गुरु अंगद देव जी” बना हुआ है।

=> गुरु अंगद देव जी के एकांत में 6 महीने ध्यान लगाने के दौरान माता खीवी और उनके परिवार को एक सिख अनुयायी “माता निहाल कौर” ने अपने घर में शरण दी।

=> खंडूर साहिब ( तरनतारन ) शहर में जिस घर में गुरु अंगद देव जी का परिवार रहता था। वहाँ पर “गुरुद्वारा मल अखाड़ा साहिब” बना हुआ है। यहीं पर बाबा बुड्डा जी ने गुरु जी को संगत के सामने आने के लिए आग्रह किया।

गुरुद्वारा मल अखाड़ा साहिब, खंडूर साहिब
गुरुद्वारा मल अखाड़ा साहिब, खंडूर साहिब

=> 1540 में दिल्ली मुग़ल बादशाह हुमायूँ खंडूर साहिब में ही गुरु जी से मिलने आये थे।

=> 1544 में भाई बाला जी का देहांत खंडूर साहिब में हुआ। गुरु अंगद देव जी ने उनका अंतिम संस्कार किया। यहाँ “भाई बाला जी का स्मारक” बना हुआ है।

=> 1547 में गुरु जी ने मालवा की यात्रा की थी।

=> गुरु अंगद देव जी कुश्ती के शौकीन थे। उन्होंने “मल्ल अखाड़ों” ( कुश्ती के मैदान ) का एक व्यवस्थित नेटवर्क स्थापित किया। जिसमें स्वास्थ्य शिक्षा, शारीरिक प्रशिक्षण व मार्शल आर्ट सिखाई जाती थी।

=> गुरु अंगद देव जी ने गुरु का लंगर में कड़ा-प्रसाद की प्रथा चलाई। यह प्रथा तब से लेकर वर्तमान में भी निरन्तर चली आ रही है।

=> गुरु अंगद देव जी ने गुरु का लंगर की व्यवस्था को ठीक किया। यहाँ पर किसी भी जाति, धर्म या समुदाय का व्यक्ति मुफ्त में भोजन कर सके। गुरु का लंगर की व्यवस्था को ठीक करने में माता खीवी जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

=> गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु अर्जुन देव जी तक पाँच गुरुओं के समय गुरु का लंगर की व्यवस्था को माता खीवी जी की देख-रेख में चलाया गया था। माता खीवी जी गुरु अंगद देव जी के देहांत के 30 साल बाद तक जीवित रही 1582 में उनका देहांत हुआ।

=> लंगर की व्यवस्था को इतने लम्बे समय तक देख-रेख करने के कारण गुरुद्वारा खंडूर साहिब के लंगर को आज भी “माता खीवी जी का लंगर” कहा जाता है

=> 1582 में माता खीवी जी का देहांत 76 साल उम्र में श्री खंडूर साहिब में हुई। माता खीवी जी के अंतिम संस्कार में गुरु अर्जुन देव जी शामिल हुए थे।

=> माता खीवी जी सिख धर्म की एकमात्र महिला है, जिसकी प्रशंसा श्री गुरु ग्रंथ साहिब में की गई है। जिसका उल्लेख “गुरु ग्रन्थ साहिब” में किया गया है। ( अंग 967 )

=> गुरु ग्रन्थ साहिब में दर्ज “भाई सत्ता जी – भाई बलवंड जी” की “रामकली की वार” में माता खीवी जी की लंगर सेवा की मुक्त कंठ से प्रशंसा की गई है।

“बलवंड खीवी नेक जन 

जिसु बहुती छाउ पत्राली।।

लंगरि दउलति वंडीऐ

रसु अमृतु खीरि घिआली।।

गुरसिखा के मुख उजले मनमुख थीए पराली।।

पए कबूलु खसम नालि जां घाल मरदी घाली।।

माता खीवी सहु सोइ जिनि गोइ उठाली।।”

( अंग 967 )

अर्थ:- भाई बलवंड जी के शब्दों में, माता खीवी जी अपने पति गुरु अंगद देव जी के समान ही नेक/भली है। माता जी की जीवन-छाया घने पत्तों वाले वृक्ष के समान सुखदायी है, अर्थात उनके पास बैठने से सबको बड़ा सुख एंव शान्ति मिलती है। माता खीवी जी की निगरानी में गुरु के लंगर में घी वाली खीर वितरित कर रहे है। जिसका स्वाद अमृत के समान मीठा है।

यहाँ गुरु के शिष्यों के मुख सदा उज्ज्वल रहते है। किन्तु मनमुख जल बुन गए है और उनकी कोई पूछ नहीं होती। गुरु अंगद देव जी ने जब शूरवीरों वाली साधना की तो ही वे अपने मालिक को स्वीकार हुए। माता खीवी जी के पति गुरु अंगद देव जी ऐसे शूरवीर है, जिन्होंने सारी पृथ्वी का भार अपने सिर पर उठा लिया है।

=> “गोइंदा या गोंडा” नामक “मारवाह खत्री” ने गुरु अंगद देव जी से ब्यास नदी के पश्चिम दिशा में गाँव आबाद करने का आग्रह किया। गुरु जी ने अपने प्रिय शिष्य “अमर दास जी” को वहीं रहकर गाँव को आबाद करने का काम सौंपा। गोइंदा/गोंडा नामक व्यापारी के नाम पर ही इस गाँव का नाम “गोइंदवाल” रखा गया।

=> गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि ( पंजाबी ) का अविष्कार किया। साथ ही मानकीकृत और विकसित किया।

=> गुरु जी ने युवाओं को संस्कृत के बजाय गुरुमुखी लिपि ( पंजाबी ) सिखाने के लिए गुरुमुखी पाठशालाएं स्थापित की। ताकि गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का प्रचार प्रसार आम लोगों की अपनी बोल चाल की भाषा में किया जा सके।

=> गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी की वाणी के श्लोकों ( भजनों ) संकलित ( इकट्ठा ) करवाया।

=> 26 मार्च, 1552 को गुरु अंगद देव जी ने अपने प्रिय शिष्य भाई “अमर दास जी” को अपना उत्तराधिकारी गुरु बनाया। और 5 पैसे व नारियल रखकर गुरु अमर दास जी के सामने सर झुकाया।

=> 29 मार्च, 1552 को खंडूर साहिब में गुरु अंगद देव जी का देहांत हुआ

=> गुरु अंगद देव जी का अंतिम संस्कार खंडूर साहिब में यहाँ किया गया। वहाँ गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब ( अंगीठा साहिब, श्री गुरु अंगद देव जी ) बना हुआ है।

गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब ( अंगीठा साहिब )
गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब ( अंगीठा साहिब ) खंडूर साहिब, पंजाब

=> सिखों के दस गुरुओं में से आठ गुरुओं ने खंडूर साहिब में आकर अपने पद चिन्हों से यहाँ की धरती को धन्य किया। सिर्फ दो सिख गुरु ( गुरु हर कृष्ण जी और गुरु गोबिन्द सिंह जी ) यहाँ नहीं आये।

=> गुरु अंगद देव जी ने 63 श्लोकों ( भजनों ) की रचना की, जो “गुरु ग्रन्थ साहिब” में अंकित हैं। श्री राग-2, माझ दी वार-12, आसा दी वार-15, सोरठ दी वार-1, सूही दी वार-11, रामकली दी वार-7, सारंग दी वार-9, मलार दी वार-5, मारू दी वार-1

 

 

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