गुरु हरगोबिंद जी

गुरु हरगोबिन्द जी

 

महत्वपूर्ण जानकारी

 

=> गुरु हरगोबिन्द जी सिख धर्म के 6वें सिख गुरु थे।

=> गुरु हरगोबिन्द जी का जन्म 19 जून, 1595 को “गाँव गुरु की वडाली, छेहरटा, जिला अमृतसर” में हुआ था। यह गाँव अमृतसर शहर से 9 कि.मी. दूर है।

=> गुरु हरगोबिन्द जी के पिता का नाम “गुरु अर्जुन देव जी” और माता का नाम “माता गंगा जी” था।

=> गुरु जी का परिवार “सोढ़ी खत्री” था।

=> गुरु हरगोबिन्द जी बचपन में चेचक की बीमारी से बहुत बीमार हो गए थे। जिससे उनकी जान मुश्किल से ही बच पाई थी। जिसका वर्णन गुरु ग्रन्थ साहिब में अंग 620 पर किया गया है।

मेरा सतिगुरु रखवाला होआ ।।

धारि क्रिपा प्रभ हाथ दे राखिआ हरि गोविदु नवा निरोआ ।।

तापु गइआ प्रभि आपि मिटाइआ जन की लाज रखाई ।।

साधसंगति ते सभ फल पाए सतिगुर कै बलि जाई ।।

हलतु पलतु प्रभ दोवै सवारे हमरा गुणु अवगुणु न बीचारिआ।।

अटल बचनु नानक गुर तेरा सफल करु मसतकि धारिआ ।।

( अंग 620 )

=> पृथ्वी चंद और उसकी पत्नी कर्मों ने तीन बार बालक हरगोबिन्द को मारने की कोशिश की। पहली बारे पृथ्वी चंद ने एक सपेरे को खेल दिखाने के बहाने बालक हरगोबिन्द के पास कोबरा साँप छुड़वाया लेकिन हरगोबिन्द जी बच गए। दूसरी बार कर्मों ने अपनी निजी नर्स से बालक हरगोबिन्द की दूध पिने की निप्पल के चारों और जहर लगवा दिया। लेकिन बालक हरगोबिन्द जी ने दूध पिने से इनकार कर दिया।

तीसरी बार पृथ्वी चंद और उसकी पत्नी कर्मों के कहने पर एक ब्राह्मण ने बालक हरगोबिन्द को दही में जहर डाल कर खिलाना चाहा लेकिन दही से भरा हुआ कटोरा फर्श पर गिर गया। गिरी हुई दही को एक पालतू कुत्ते ने खा लिया और तुरंत मर गया। और ब्राह्मण द्वारा अपने हाथ की उँगलियों को अपने होठों पर लगाने से ब्राह्मण के पेट में जहर के असर से बीमारी हो गई जिससे ब्राह्मण की मौत हो गयी। जिसका वर्णन गुरु ग्रन्थ साहिब में अंग 1137 पर किया गया है।

लेपु न लागो तिल का मूली ।। दुसटु ब्राहमणु मूआ होइ कै सूल ।।

हरि जन राखे पारब्रहमि आपि ।। पापी मूआ गुर परतापि ।।

अपणा खसमु जनि आपि धिआइआ ।। इआणा पापी ओहु आपि पचाइआ ।।

प्रभ मात पिता अपणे दास का रखवाला ।।निंदक का माथा ईहां ऊहा काला ।।

जन नानक की परमेसरि सुणी अरदासि ।। मलेछु पापी पचिआ भइआ निरासु ।।

( अंग 1137 )

=> 1630 में श्री हरगोबिन्दपुर में गुरु हरगोबिन्द जी के नेतृत्व में सिख सेना और स्थानीय मुस्लिम नवाब की सेना के बीच लड़ाई हुई। जिसमें सिख सेना की जीत हुई। और गुरु जी ने श्री हरगोबिन्दपुर शहर को फिर से आबाद किया। यहीं पर अब “गुरुद्वारा दमदमा साहिब” बना हुआ है। इस शहर को गुरु अर्जुन देव जी ने 1587 में बसाया था।

=> 1630 श्री हरगोबिन्दपुर शहर में स्थानीय मुस्लिम आबादी के अनुरोध पर गुरु हरगोबिन्द जी ने एक मस्जिद का निर्माण करवाया, जो आज भी मौजूद है। इसे अब “गुरु की मसीत (गुरु की मस्जिद)” कहा जाता है। 1947 में पंजाब के विभाजन के समय निहंगों ने गुरु की मसीत पर कब्ज़ा कर लिया और मस्जिद के स्थान पर एक गुरुद्वारा स्थापित किया। गुरु जी ने श्री हरगोबिन्दपुर शहर में हिन्दुओं के लिए एक धर्मशाला का भी निर्माण करवाया।

 

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