गुरु नानक देव जी

गुरु नानक देव जी

 

महत्वपूर्ण जानकारी

 

=> गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई. में दिल्ली सल्तनत के लाहौर प्रान्त के ‘राय भोई की तलवंडी’ (वर्तमान में ननकाना साहिब,पंजाब, पाकिस्तान) गाँव में हुआ था।

=> गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक और पहले सिख गुरु थे।

=> गुरु नानक देव जी के पिता का नाम कल्याणचंद राय ( महत्ता कालू ) था और माता का नाम त्रिप्ता देवी था।

ननकाना साहिब,पंजाब, पाकिस्तान
गुरुद्वारा ननकाना साहिब,पंजाब, पाकिस्तान

=> गुरु जी का परिवार “बेदी खत्री” था।

=> गुरु जी का नाम कुल पुरोहित हरदयाल पंडित जी ने रखा था।

=> गुरु नानक देव जी की बड़ी बहन का नाम नानकी था।जिसे बेबे नानकी या बहन नानकी भी कहा जाता था। बेबे नानकी का जन्म 1464 ई. में  ‘चहल शहर, जिला कसूर, पाकिस्तान’ में हुआ था।

=> बेबे नानकी को गुरु नानक देव जी के पहले अनुयायी के रूप में जाना जाता है।

=> महत्ता कालू जी तलवंडी के मुस्लिम राजपूत जमींदार राय बुलार भाटी के यहाँ पटवारी का काम करते थे।

=> राय बुलार एक विनम्र एवं संत व्यक्ति थे। आगे चलकर राय बुलार गुरु नानक देव जी के पहले शिष्य बनें और साथ ही अपने हिस्से की आधी जमीन 18,000 एकड़ गुरु जी को भेंट/दान कर दी। इस जमीन का ज्यादातर हिस्सा आज भी ननकाना साहिब ट्रस्ट के अधीन है।

=> 1475 में 11 साल की उम्र में बेबे नानकी की शादी जयराम जी के साथ हुई। जोकि सुल्तानपुर लोधी के पटवारी परमानन्द “पलटा खत्री” के पुत्र थे। सुल्तानपुर लोधी में जिस घर में बेबे नानकी जी रहती थी वहाँ पर “गुरुद्वारा श्री बेबे नानकी जी” बना हुआ है। 

=> जयराम जी सुल्तानपुर लोधी के नवाब के यहाँ राजस्व विभाग में कारिंदे की नौकरी करते थे।

=> 1475 में लगभग 7 साल की उम्र में गुरु नानक देव जी को पिता मेहता कालू जी द्वारा पंडित गोपाल दास की पाठशाला में हिंदी सिखने के लिए भेजा।

=> 1478 में 9 साल की उम्र में गुरु जी ने जनेऊ पहने से इनकार कर दिया था।

=> 1478 में पंडित बृजलाल शर्मा के पास संस्कृत सिखने के लिए गए।

=> 1480 में मौलवी क़ुतुब-उल-दीन के पास फ़ारसी सिखने के लिए गए।

=> 1484 में मरदाना के साथ “शेख फ़रीद की समाधी” के मेले में अजोधन ( पाक पट्टन, पाकिस्तान ) में महंत शेख अब्राहिम व साधु-संतों के साथ सत्संग में चर्चा की।

=> 1484 में मेहता कालू जी ने गुरु जी को सच्चा सौदा करने के लिए 20 रूपये देकर भाई बाला जी ( सिंधू गोत्र के जाट ) के साथ चूहड़काना गाँव जाने को कहा। रास्ते में भूखे साधु मिले जिन्हे गुरूजी ने 20 रूपये का भोजन करा दिया। इन साधुओं के महंत का नाम “संत रेन” था।

=> जिस जगह पर भूखे साधुओं को भोजन कराया उस जगह पर “गुरुद्वारा सच्चा सौदा साहिब” बना हुआ है। यह गुरुद्वारा लाहौर-लायलपुर रेलवे लाइन पर लाहौर से 37 मील दूर, वर्तमान में फ़ारुकाबाद शहर, पाकिस्तान में है।

=> सच्चा सौदा करके लौटते समय गुरु नानक देव जी पिता जी के डर से तलवंडी गाँव के बाहर ही एक पेड़ के नीचे बैठ गए। यहाँ गुरु बैठे थे वहाँ अब “गुरुद्वारा तम्बू साहिब” बना हुआ हे। यह जगह ननकाना साहिब, पाकिस्तान में ही है।

=> 1484 में पिता जी परेशानी को देखते हुए बेबे नानकी और जयराम जी गुरु नानक देव जी को अपने साथ सुल्तानपुर लोधी ले गए।

=> जयराम जी के आग्रह पर गुरु जी ने नवाब दौलत खान लोधी के खाद्य भंडार ( मोदीखाना ) में मोदी ( प्रबंधक ) की नौकरी की। मोदी उसे कहा जाता था जो नौकरों को नगद वेतन की जगह पर खाद्य सामग्री तोल कर देता था। सुल्तानपुर लोधी में जिस मोदीखाने में बाबा नानक, मोदी की नौकरी करते थे। वहाँ पर “गुरुद्वारा हट साहिब” बना हुआ है।

गुरुद्वारा हट साहिब
गुरुद्वारा हट साहिब, सुल्तानपुर लोधी

=> 8 जुलाई, 1487 को बटाला के निवासी मूल चंद “चोना खत्री” व माता चंदो रानी की पुत्री “सुलखनी” के साथ गुरु नानक देव जी का विवाह हुआ।बटाला में यहाँ गुरु नानक देव जी की शादी हुए वहाँ पर “गुरुद्वारा कंध साहिब” बना हुआ है

=> उस समय मूल चंद जी गुरदासपुर के “पक्खोंके रन्धावे” गाँव (वर्तमान डेरा बाबा नानक में स्थित) में पटवारी का काम करते थे।

=> माता सुलखनी को चोनी/घुम्मी/कुलामई आदि नामों से भी जाना जाता था।

=> सुल्तानपुर लोधी के नवाब दौलत खान लोधी ने हिसाब-किताब में गड़बड़ी की शिकायत मिलने पर गुरु जी को राई मसूदी अकाउटेंट जनरल के घर हिसाब के लिए बुलाया गया, जहां लोगों के लगाए इल्जाम बेबुनियाद साबित हुए और हिसाब कम की जगह ज्यादा निकला था। वहाँ पर “गुरुद्वारा कोठी साहिब” बना हुआ है।

=> गुरु नानक देव जी विवाह के बाद सुल्तानपुर लोधी में जिस घर में रहे और यहाँ पर दोनों पुत्रों बाबा श्री चंद जी और बाबा लक्ष्मीचंद जी को माता सुलखनी ने जन्म दिया वहाँ पर “गुरुद्वारा गुरु का बाग़” बना हुआ है।

=> 8 सितंबर 1494 को सुल्तानपुर लोधी में बाबा श्री चंद जी का जन्म गुरु नानक देव जी और माता सुलखनी जी के घर हुआ था। श्री चंद जी सिख धर्म में “उदासी संप्रदाय” के संस्थापक थे।

=> 12 फरवरी 1497 को सुल्तानपुर लोधी में ही बाबा श्री लक्ष्मीचंद जी का जन्म गुरु नानक देव जी और माता सुलखनी जी के घर हुआ था। श्री लक्ष्मीचंद जी सिख धर्म में “जगियासी संप्रदाय” के संस्थापक थे।

=> सुल्तानपुर लोधी जब एक बार गुरु नानक अपने सखा मर्दाना के साथ “काली बेईं” नदी के किनारे बैठे थे तो अचानक उन्होंने नदी में डुबकी लगा दी और तीन दिनों तक लापता हो गए, जहाँ पर ही उन्होंने ईश्वर से साक्षात्कार किया। सभी लोग उन्हें डूबा हुआ समझ रहे थे, लेकिन गुरु जी 3 दिन बाद वापस लौटे तो उन्होंने कहा- “एक ओंकार सतिनाम। ना कोई हिंदू ना कोई मुसलमान” गुरु नानक ने वहाँ एक बेर का बीज बोया, जो आज बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है। यहीँ पर “गुरुद्वारा बेर साहिब” बना हुआ है।

गुरुद्वारा श्री बेर साहिब, सुल्तानपुर लोधी
गुरुद्वारा श्री बेर साहिब, सुल्तानपुर लोधी

 

1500-1506 पहली उदासी ( यात्रा ) पूर्वी भारत 

 

=> यहाँ गुरु नानक देव जी पहली यात्रा के दौरान रुके उन प्रमुख स्थलों का रोड मैप :-

सुल्तानपुर लोधी => लाहौर => एमनाबाद => स्यालकोट => तलवंडी => छांगा-मांगा के जंगल => मालवा => कुरुक्षेत्र => हरिद्वार => दिल्ली => अलीगढ़ => मथुरा => वृन्दावन => आगरा => कानपुर => लखनऊ => अयोध्या => काशी => जौनपुर => बक्सर => छपरा => पटना => गया => बोध गया => वैद्यनाथ धाम => मुँगेर => भागलपुर => राजमहल => मालदा (मालदेव) => मुर्शिदाबाद => वर्धवान => हुगली => ढ़ाका ( बांग्लादेश )=> कामाछा देवी का मंदिर,धनपुर => गौरीपुर => धुबरी => ब्रह्मपुत्र नदी को पार किया => करीमगंज => अजमेरी गंज => सिलहट => सरिता नदी पार की => कछार देश ( नागालैंड ) => मणिपुर => म्यांमार => रोसम => लोशार्ड नगर => घरगाउ ( नाजरा ) => ब्रह्मपुर ( सिंहल द्वीप की राजधानी ) => चाँदपुर => स्वर्णपुर => कालीघाट ( कोलकाता ) => कांचीपुरी => साखी गोपाल => जगन्नाथपुरी => बाबा साहिब की बावड़ी ( शोण नदी के किनारे ) => खुर्दहा दानापुर => सुनारतगढ़ के पास महानदी पार की => सुहागपुर => कातकगिरि => गोंडबाना राज्य => नर्मदा नदी पार की => जबलपुर => चित्रकूट => महिरकी => फरीदवाड़ा => भोपाल => सत्य महल => चंदेरी => झाँसी => ग्वालियर => आगरा => धौलपुर => भरतपुर => मथुरा => गुड़गांव => रिवाड़ी => नारनौल => झाझर => दुजाना => करनाल => थानेसर => कुरुक्षेत्र => मलेरकोटला => जगरांव => हरी के पतन => सतलज नदी पार की => सुल्तानपुर लोधी

=> पहली यात्रा के दौरान जब गुरु जी “राय भोई की तलवंडी” पहुंचे तो वहाँ के नवाब राय बुलार से तालाब बनाने को कहा  जिस जगह पर तालाब बना उस जगह को अब “नानकसर” के नाम से जाना जाता है। जो वर्तमान में फैसलाबाद के पास झांग शहर से पूर्व में 12 कि.मी. दूर में स्थित है।

=> पहली यात्रा के दौरान गुरु जी हरिद्वार में यहाँ ठहरे वह जगह अब “नानक बाड़ा” के नाम से जानी जाती है।

=> आगरा में जिस जगह नानक जी ठहरे उसे अब “गुरूजी की धर्मशाला” के नाम से पुकारते है। यहाँ “गुरुद्वारा लोहामंडी साहिब” में  गुरु नानक देव जी ने अपनी दक्षिण की यात्रा के दौरान यहाँ तीन दिन बिताए और पीलू के पेड़ के नीचे ध्यान किया था। गुरु जी को यहाँ पीलू बाबा के नाम से भी जाना जाता है। इस गुरुद्वारे को “दुख निवारण साहिब” नाम से भी जाना जाता है।

=> काशी में यहाँ ठहरे उस स्थान को “गुरु का बाग़” नाम से प्रसिद्ध है।

=> पटना पहुँचने की याद में एक धर्मशाला आज भी बनी हुई है।

=> बोध गया में “गोस्वामी देवगिरि” के साथ गुरु नानक देव जी ने सत-संग किया। देवगिरि का पोता गुरु हर राय जी का शिष्य बन गया था।

=> मालदा ( मालदेव ) पहुँच कर यहाँ बैठकर गुरु जी ने उपदेश दिया उसे अब “गुरु का बाग़” के नाम से जाना जाता है।

=> धनपुर, असम में यहाँ जादूगरनी को हराकर मरदाने को छुड़ाया और बरछा मार कर मीठा पानी निकाला व तालाब बनाया वहाँ पर अब “बरछा साहिब गुरुद्वारा” बना हुआ है।

बरछा साहिब गुरुद्वारा, असम
बरछा साहिब गुरुद्वारा, असम

=> धुबरी के बंदरगाह पर यहाँ गुरु जी पहुंचे उसे “मरदाना साहिब” के नाम से मशहूर है।

=> बाद में 9वें गुरु “गुरु तेग़ बहादुर जी” धुबरी में आये थे यहाँ “गुरुद्वारा तेग़ बहादुर साहिब” बना हुआ है। 

=> धुबरी को असम में “छोटा पंजाब” कहा जाता है।

 

1506-1513 दूसरी उदासी ( यात्रा ) दक्षिणी भारत

 

=> यहाँ गुरु नानक देव जी दूसरी यात्रा के दौरान रुके उन प्रमुख स्थलों का रोड मैप :-

सुल्तानपुर लोधी => तलवंडी => कसूर => सतलुज नदी को पार किया => धर्मकोट => भठिंडा => सिरसा => बीकानेर => जैसलमेर => जोधपुर => अजमेर => पुष्कर => नसीराबाद => देवगढ़ => लोदीपुर => आबू पर्वत => झालरा पाटन => ईडर => डूंगरपुर => बांसबाड़ा => महानदी को पार किया => जावरा => धारानगरी => चम्बल नदी को पार किया => उज्जैन => ओंकार => होशिंगाबाद => नरसिंहपुर => बालाघाट => महादेव गिरी => सोनी शहर => रामटेक => कामठी नागपुर => आवड़ा => कड़खा => करहुन नगर => विदर => बलदाना => मलंकापुर => गोदावरी नदी पार की => फ़तिहाबाद (हैदराबाद जिला ) => पोंगल प्रान्त => तिलगंज => कदली वन ( केरल ) पार किया => कृष्णा नदी पार की => पालमकोट => नाशिनी गंगा नदी पार की => अरकाट => पांडेचेरी => रामेश्वरम => जाफना ( श्री लंका ) => पुट्टलम ( श्री लंका )=> मैसूर => श्रींगेरीमठ => कालीकट => बंगलौर => बम्बई => गोदावरी के तट पर पंचवटी => अम्बकेश्वर शिवजी का मंदिर => ताप्ती नदी को पार किया => भड़ोच => बड़ोदा => अहमदाबाद => भावनगर => पालीताना => जूनागढ़ => गिरनार पर्वत => सोमनाथ का मंदिर => सुदामापुरी => द्वारिका => कच्छ का मैदान => लखपत शहर => भुज => आशापूर्णा देवी का मंदिर => नारायण सरोवर => धरणीधर की झाड़ी => अमरकोट => अलदियार के टांडे => फिरोजपुर => अहमदपुर => खानपुर => बहावलपुर => शहर उच्च => मुल्तान => तलम्बा गॉँव => तलवंडी => सुल्तानपुर लोधी

=> जूनागढ़ ( गुजरात ) में गुरु जी ने सत-संग पर चर्चा अम्भी नामक जैन साधु से की थी।

=> जूनागढ़ में ही “नरसी भगत दाता गंजबक्श पीर” अपने चेलों को गुरु जी से मिलाने लाए और गुरबाणी का आनंद लिया।

=> जूनागढ़ में गुरु नानक देव जी यहाँ ठहरे वहाँ “गुरुद्वारा चरण कमल साहिब” बना हुआ है।

=> लखपत में “गुरुद्वारा श्री गुरु नानक दरबार” में गुरु नानक देव जी और उनके पुत्र बाबा श्री चंद जी की लकड़ी की खड़ाऊ तथा पालकी, पाण्डुलिपि व गुरुमुखी लिपि रखी हुयी है।

गुरुद्वारा श्री गुरु नानक दरबार, लखपत
गुरुद्वारा श्री गुरु नानक दरबार, लखपत

=> शहर उच्च ( पाकिस्तान ) में फकीरों ने दूध का कटोरा लबालब भरा हुआ गुरु जी की सेवा में भेजा था।

=> तलम्बा गाँव ( पाकिस्तान ) में सज्जन ठग मिला था। इसी गाँव में गुरु नानक देव जी ने “पहली धर्मशाला” बनवाई थी।

=> दूसरी यात्रा के बाद गुरु जी गुरदासपुर के गाँव कलांनौर में पहुँचे यही पर करतारपुर आवाद किया।

=> करतारपुर की जमीन करोड़ीमल खत्री ने गुरु जी को दान में दी थी। मकान और धर्मशाला बन जाने के बाद गुरु नानक देव जी माता सुलखनी को भी यहीं ले आये।

 

1514-1518 तीसरी उदासी ( यात्रा ) उत्तरी भारत

 

=> यहाँ गुरु नानक देव जी तीसरी यात्रा के दौरान रुके उन प्रमुख स्थलों का रोड मैप :-

करतारपुर => कलांनौर => गुरदासपुर => दसूहे => त्रिलोकनाथ => पालमपुर => कोट कांगड़े => ज्वालामुखी => मनीपुर => रवालसर => मणिकर्ण => नादौन => सुकेत => मंडी => कुल्लू => चम्पा => कीर्तिपुर => पंजोर => जोहड़ साहिब => महिसार => गढ़वाल => मन्सूरी => चकराता => उत्तरकाशी => गंगोत्री => यमनोत्री => श्री नगर ( उत्तराखंड ) => बद्रीनारायण => वसुधरा => हेमकूट => सत्य श्रृंग पहाड़ => लोकनाथ => सुमेर पर्वत => रानी खेत => अल्मोड़े => नैनीताल => नानकमत्ता => गोरखपुर => मानसरोवर => कृष्ण ताल => धोलागढ़ => काठमांडू => ललता पट्टी => पोरस्ट पहाड़ => सिक्किम => कंचन चंगा => तासी सूदन => लखीम => ब्रह्मकुंड => डेरहगढ़ => शिवपुर => रानीगंज => जनकपुर => गंडकी नदी को पार किया => सीतामढ़ी => गोरखपुर => बलिरामपुर => काशीपुर => सीतापुर => वल्लभ => लुधियाना => जालंधर => सुल्तानपुर => करतारपुर

=> उत्तराखण्ड में रुद्रपुर-टनकपुर मार्ग पर नानकमत्ता नामक स्थान पर “गुरुद्वारा नानकमत्ता साहिब” बना हुआ है। इस जगह पर गुरु जी तीसरी उदासी ( यात्रा ) के दौरान रुके थे।

gurudwara nanakmatta sahib
गुरुद्वारा नानकमत्ता साहिब, उत्तराखण्ड

=> काठमांडू, नेपाल में यहाँ गुरु जी ठहरे वहाँ पर “नानक मठ” नाम का मंदिर बना हुआ है।

=> तीसरी उदासी ( यात्रा ) के दौरान गुरु नानक देव जी चीन से 5 कि.मी. दूर उत्तरी सिक्किम में “गुरुडोंगमार झील” के पास गए। यहाँ के लोगों ने गुरु जी अपनी समस्या बताई की इस झील का पानी साल भर जमा रहता है। गुरु जी ने अपनी छड़ी से झील का पानी छुआ, उसके बाद आज तक इस झील पूरी नहीं जमी।

=> “गुरुडोंगमार झील” के स्थानीय लोगों ने अपने तिब्बति बौद्ध गुरु “रिनपोछें” के नाम से गुरु जी को “रिनपोछें नानक गुरु” व “नानक लामा” नाम से पुकारने लगे।

=> गुरुडोंगमार झील के पास भारतीय सेना के सिख सैनिकों द्वारा “गुरुद्वारा डोंगमार साहिब” बनवाया।

=> उत्तरी सिक्किम में चुंगथांग में जब गुरु नानक देव जी गए तो उन्होंने वहाँ पर केले व चावल खाए जो वो साथ लेकर गए थे। वहाँ के लोगों ने पहली बार केले और चावल देखे थे। यहाँ गुरु जी एक गुफा में ठहरे थे वहाँ “गुरुद्वारा नानक लामा” बना हुआ।

गुरुद्वारा नानक लामा, चुंगथांग, सिक्किम
गुरुद्वारा नानक लामा, चुंगथांग, सिक्किम

=> लेह से 20 कि.मी. दूर लेह-श्रीनगर मार्ग पर “गुरुद्वारा पत्थर साहिब” बना हुआ है। यहाँ पर गुरु जी को किसी शैतान ने मारने की कोशिश की थी।

=> अंनतनाग के पास मट्टन में “पंडित ब्रह्म दास” का गुरु जी ने अहंकार तोडा वहाँ पर “गुरुद्वारा गुरु नानक देव जी मट्टन साहिब” बना हुआ है।

=> 1518 में बेबे नानकी देहांत हुआ और इनकी मृत्यु के तीन दिन बाद उनके पति जयराम जी का भी देहांत हो गया। दोनों का अंतिम संस्कार गुरु नानक देव जी ने किया।

 

1519-1522 चौथी उदासी ( यात्रा ) मध्य पूर्व

 

=> यहाँ गुरु नानक देव जी चौथी यात्रा के दौरान रुके उन प्रमुख स्थलों का रोड मैप :-

करतारपुर => एमनाबाद => वजीराबाद => रोहितास पहाड़ => टिल्ले बाल गढ़ाई => पिंडदादन खाँ => पाकपट्टन => डेरा इस्माइल खाँ => डेरा गाजी खाँ => जमानपुर => राजनपुर => कोट मिठ्ठन => शहर सक्खर => शिकारपुर => लकराना => हैदराबाद => कराची => हिंगलाज की देवी का मंदिर ( बलूचिस्तान ) => कलात => शिप से सऊदी अरब => मक्का => मदीना => मिश्र => बगदाद => इस्तांबुल => अलोपो ( हल्ब ) => रोम => दरियाये दज़ला और फरात को पार किया => तेहरान => हिरात => बुखारा => काबुल => कंधार => जलालाबाद => पेशाबर => हसन अब्दाल की पहाड़ी => पंजा साहिब => कश्मीर => एमनाबाद => करतारपुर 

=> पाकपट्टन में गुरु नानक देव जी बुद्धिमान विद्वान शेख ब्रह्म से मिलने के लिए पहुंचे। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में बाबा फ़रीद के शब्द दर्ज हैं। शेख ब्रह्म बाबा फ़रीद के ग्यारहवें उत्तराधिकारी थे। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में आसा दी वार की पहली नौ पौड़ियाँ गुरु नानक ने शेख ब्रह्म से उनकी जिज्ञासाओं के जवाब में चर्चा करते हुए कही थीं। बाकी 15 पौड़ियाँ लाहौर के धुनी चंद दुफ़र को संबोधित की गई थीं।

=> मक्का में गुरु जी की मुलाकात ईरान के इतिहासकार और लेखक हाजी रुकन-उद-दीन और हाजी ताजुद्दीन नक्शबंधी से हुई। रुक्न-उद-दीन और नक्शबंधी दोनों ने मक्का में गुरु नानक के साथ अपनी मुलाकातें रिकॉर्ड की हैं।

=> इस्तांबुल में गुरु नानक देव जी के आने की याद में एक शिलालेख आज भी मौजूद है। जिसकी अंतिम लाइन में  ‘अब्द-अल-मजीद नानक’ लिखा हुआ है।

इस्तांबुल गुरु नानक देव जी
इस्तांबुल में गुरु नानक देव जी का शिलालेख

=> बगदाद में गुरु जी ने पीर दस्तगीर और पीर बहलोल के साथ आध्यात्मिक और आध्यात्मिक विचारों का आदान-प्रदान किया, जो दोनों बाद में गुरु नानक के शिष्य बन गए।

=> बगदाद में पीर बहलोल के मकबरे के पास बाबा नानक तीर्थस्थल आज भी है।

=> गुरु जी जब बगदाद से चले तो खलीफा ने उनको एक जामा व चोला भेंट किया जिस पर कई भाषाओं में कुरान की आयातें लिखी है। डेरा बाबा नानक के मेले के अवसर पर यह चोला दिखाया जाता है।

=> वापसी यात्रा ( उदासी ) के दौरान बगदाद ( इराक ) में मरदाना बीमार पड़ गए और उनकी मृत्यु हो गई। भारी मन से गुरु जी ने अपने हाथों से मरदाना का अंतिम संस्कार किया। बगदाद रेलवे स्टेशन से 2.5 किलोमीटर दूर एक कब्रिस्तान के पास मरदाना की याद में एक छोटा स्मारक बनाया गया। जिस पर तुर्की और अरबी में मिश्रित भाषा में एक शिलालेख है। शिलालेख पर लिखा था “गुरु मुराद की मृत्यु हो गई। बाबा नानक फकीर ने इस इमारत के निर्माण में मदद की, जो एक पुण्य अनुयायी की कृपा का कार्य है, 927 AH” बगदाद के निवासी मरदाना को मुराद कहते थे और नानक से दस साल बड़े होने के कारण उन्हें गुरु माना जाता था। 

=> हसन अब्दाल की पहाड़ी पर “वली कंधारी” नाम का फ़क़ीर रहता था। जिसने गुरूजी पर पर्वत के ऊपर से चट्टान धकेल दी। यह चट्टान “पंजा साहिब” के नाम से मशहूर है।

=> मरदाना के दोनों पुत्र शाहजादा व रजादा करतारपुर की धर्मशाला में रबाब पर भजन गाते थे।

=> 24-12-1522 को करतारपुर में गुरु नानक देव जी के पिता श्री महत्ता कालू जी का देहांत हो गया और उसके कुछ दिनों के बाद ही माता त्रिप्ता जी भी अपनी सांसारिक यात्रा पूरी करके चली गयी।

=> 1526 में बाबर ने गुरु नानक देव जी को जेल में बंद कर दिया था।

=> गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 16 साल करतारपुर में ही बिताये।

=> गुरु नानक देव जी ने “गुरु का लंगर” की शुरुआत की।

=> गुरु नानक देव जी ने अपना उत्तराधिकारी चुनने के लिए अपने शिष्यों के साथ-साथ अपने पुत्रों की भी कुल 7 परीक्षाएं ली। इन सात परीक्षाओं को सिर्फ “भाई लहणा” ही पास कर पाया। जिसके कारण गुरु नानक देव जी ने भाई लहणे को “गुरु का ही अंग” कहा और नया नाम “अंगद” दिया व 7 सितम्बर, 1539 को दूसरा गुरु घोषित किया।

=> करतारपुर में 22 सितम्बर, 1539 को गुरु नानक देव जी अपनी सांसारिक यात्रा पूरी करके स्वर्गवास को चले गए।

गुरुद्वारा करतारपुर साहिब
गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर

=> 1545 में 72 साल की उम्र में माता सुलखनी जी का करतारपुर में देहांत हो गया।

=> श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में गुरु नानक देव जी की वाणी रचना के ” 974 शब्द, 19 रागों में है।

=> श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में प्रमुख वाणियां : जप, पहरे, वार माझ, पटी, अलाहणीआ, कुचजी, सुचजी, थिती, ओअंकार, सिध, गोसटि, बारह माहा, आसा की वार और वार मलार

 

 

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