गुरु राम दास जी

गुरु राम दास जी

 

महत्वपूर्ण जानकारी

 

=> गुरु राम दास जी सिख धर्म के चौथे सिख गुरु थे।

=> गुरु राम दास जी का जन्म 24 सितम्बर, 1534 में “चुना मंडी, लाहौर, पंजाब ( पाकिस्तान )” में हुआ था। यह जगह लाहौर में कोतवाली वाला बाजार मार्ग पर स्थित है। जिस घर में गुरु राम दास जी का जन्म हुआ, वहाँ पर अब “गुरुद्वारा जन्म स्थान गुरु राम दास जी” बना हुआ है।

गुरुद्वारा जन्म स्थान गुरु राम दास जी, चुना मंडी, लाहौर, पंजाब ( पाकिस्तान )
गुरुद्वारा जन्म स्थान गुरु राम दास जी, चुना मंडी, लाहौर, पंजाब ( पाकिस्तान )

=> गुरु राम दास जी के पिता का नाम भाई हरि दास और माता अनूप देवी था, जिसे बाद में अनूप कौर या दया कौर के नाम से भी जाना जाता था।

=> गुरु राम दास जी का परिवार “सोढ़ी खत्री” था।

=> गुरु बनने से पहले गुरु राम दास जी का नाम “भाई जेठा” था।

=> भाई जेठा जी के दादा का नाम ठाकुर दास था। तथा परदादा का नाम गुरदयाल सोढ़ी था।

=> भाई जेठा जी का परिवार चुना मंडी के प्रसिद्ध दुकानदार थे।

=> गुरु राम दास जी के छोटे भाई का नाम “हरदयाल” और छोटी बहन का नाम “राम दासी” था। अपनी बहन और भाई से बड़ा होने के कारण गुरु जी का बचपन में ही नाम जेठा पड़ गया था।

=> 1541 में गुरु जी के माता-पिता का देहांत हो गया। तब भाई जेठा जी की उम्र 7 साल की थी।उनके रिश्तेदारों ने उनसे संपर्क करने से परहेज किया। एक दिन भाई जेठा जी की “नानी जसवंती” उनके घर आई और उन्होंने अनाथ हो चुके भाई जेठा और उसके भाई-बहन को फटे-पुराने कपड़ों व थोड़े-बहुत खाने के सामान के साथ देखा। फिर वह तीनों को अपने साथ गाँव “बासरके, अमृतसर” ले गयी।

=> गाँव बासरके भाई जेठा जी ( गुरु राम दास जी ) का ननिहाल था। और गुरु अमर दास जी का पैतृक गाँव था।

=> गाँव बासरके में ही पहली बार गुरु अमर दास जी से भाई जेठा जी ( गुरु राम दास जी ) की मुलाकात हुई।

=> 1541 से 1546 तक गाँव बासरके में लगभग पाँच साल तक अनाथ भाई जेठा जी ने अपना और अपने भाई-बहन के साथ बेसहारा नानी जसवंती की आजीविका चलाने के लिए उबले हुए काले चने/गेहूँ की बनी घुंघनियां बेचनी पड़ी

=> 1546 में जब गुरु अंगद देव जी ने अमर दास जी को व्यास नदी के किनारे गोइंदवाल गाँव आबाद करने और वहीं रहने के लिए बोला तो गोइंदवाल को आबाद करने के लिए बासरके गाँव से कुछ लोगों के साथ जसवंती, भाई जेठा और उनके भाई-बहन भी आकर रहने लगे और फिर यहीं बस गए।

=> गुरु अमर दास जी के गुरु बनने के बाद भाई जेठा जी गोइंदवाल आने वाली संगत को खूह ( कुआँ ) से पानी पिलाने का काम करते थे। वहाँ पर अब “गुरुद्वारा खूह साहिब” बना हुआ है। इस कुएँ का निर्मल जल आज भी उपयोग में लिया जाता है।

गुरुद्वारा खूह साहिब, गोइंदवाल
गुरुद्वारा खूह साहिब, गोइंदवाल

=> 18 फरवरी, 1554 को गुरु अमर दास जी की बेटी बीबी भानी जी का विवाह भाई जेठा ( गुरु राम दास जी ) से हुआ।

=> बीबी भानी जी का जन्म 19 जनवरी, 1535 में गुरु अमर दास जी के घर बासरके गिलां, अमृतसर में हुआ।

=> माता भानी जी और गुरु राम दास जी ( भाई जेठा जी ) के घर तीन पुत्रों का जन्म हुआ। (1) पृथ्वी चन्द जी (1558) (2) महादेव जी (1560) और (3) अर्जुन देव जी (1563)।

=> बादशाह अकबर को शिकायत मिली की “सिख धर्म की शिक्षाओं में हिन्दू और इस्लाम दोनों धर्मों को बदनाम कर रहा है।” तो गुरु अमर दास जी के आदेश पर भाई जेठा जी लाहौर में बादशाह अकबर से मिले।

भाई जेठा जी ने अकबर के दरबार में कहा:-

“जन्म और जाति भगवान के सामने बेकार हैं। मनुष्य के कर्म ही उसे बनाते या बिगाड़ते हैं। अज्ञानी लोगों को अंधविश्वासों से शोषित करना और उसे धर्म कहना भगवान और मनुष्य के विरुद्ध अपवित्रता है। अनंत, निराकार और निरपेक्ष भगवान की पूजा किसी कुलदेवता, मूर्ति या प्रकृति की किसी तुच्छ समयबद्ध वस्तु के रूप में करना; लोगों को यह विश्वास दिलाना कि वे अपने पापों को करुणा और आत्म-समर्पण से नहीं, बल्कि स्नान से धो सकते हैं; विशेष आहार-विहार पर जोर देना-क्या खाना चाहिए और क्या नहीं; यह कहना कि एक निश्चित भाषा और पोशाक भगवान तक पहुँचने की अनुमति देती है।

और मनुष्यों, पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के समूह को अवमानव का दर्जा देना, जिन्हें उन शास्त्रों को पढ़ने की भी अनुमति नहीं है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे उनके जीवन पर शासन करते हैं; उन्हें कभी भी पूजा के घर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है; उन्हें केवल सबसे नीच अपमानजनक कार्य करने की अनुमति है, मनुष्य को मनुष्य से अलग करना है। यह धर्म नहीं है और न ही तपस्वी बनकर दुनिया को नकारना धर्म है, क्योंकि यह केवल दुनिया में ही है। ताकि मनुष्य अपनी आध्यात्मिक सम्भावनाओं को खोज सके।”

भाई जेठा जी द्वारा बताई गई सिख शिक्षाओं के सिद्धांतों से प्रभावित होकर बाहशाह अकबर ने गुरु अमर दास जी पर लगे सभी आरोपों को ख़ारिज कर दिया।

=> 1574 में अगस्त के अंतिम सप्ताह में गुरु अमर दास जी ने अपने प्रिय शिष्य और दामाद भाई जेठा जी का नाम बदल कर “राम दास” रख दिया और उन्हें गुरुगद्दी प्रदान करते हुए, पाँच पैसे और नारियल रखकर जब माथा टेका ( नतमस्तक हुए ) तो गुरु राम दास जी बैराग में बोल उठे :- 

“पातशाह ! आप जानते है कि मैं लाहौर की गलियों में अनाथ फिरता था।

मुझ जैसे अनाथ को आश्रय देने को कोई तैयार न था।

पातशाह ! यह आपकी कृपा है कि आपने मुझ कीड़े को प्यार से देखा,

और मुझ अनाथ को आज आसमां पर पहुँचा दिया है।”

=> 1 सितम्बर, 1574 को गुरु अमर दास जी के स्वर्गवास ( देहांत ) के बाद गुरु राम दास जी गुरुगद्दी पर बैठे

=> राजयोग का तख़्त भगवान कृष्ण को मिला हुआ था। भगवान कृष्ण के स्वर्गवास के बाद राजयोग का तख़्त खाली हो गया था। भगवान कृष्ण के बाद अगर किसी महापुरुष को राजयोग का तख़्त मिला है तो वो सिखों के चौथे गुरु राम दास जी है। इसका उल्लेख “श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी” में भी किया गया है :-

“राजु जोगु तखतु दीअनु गुर रामदास ॥

पर्थमे नानक चंदु जगत भयो आनंदु तारिन मनुख्य जन कीअउ प्रगास ॥

गुर अंगद दीअउ निधानु अकथ कथा

गिआनु पंच भूत बसि कीने जमत न त्रास ॥

गुर अमरु गुरू स्त्री सति कलिजुगि राखी पति अघन देखत

गतु चरन कवल जास ॥

सभ बिधि मान्यिउ मनु तब ही भ्यउ प्रसंनु राजु जोगु तखतु दीअनु गुर रामदास ॥” ( अंग 1399 ) 

=> गुरु राम दास जी ने गुरु बनने के बाद सिखों के मांझे क्षेत्र में सिखी के प्रचार-प्रसार पर ज्यादा ध्यान दिया।

=> गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र बाबा श्री चंद जी ने जब लोगों से गुरु राम दास जी की महिमा का गुणगान सुना तो वह गुरु जी से मिलने के लिए “गुरु का चक्क”(अमृतसर) आये।

=> बाबा श्री चंद जी के आने की सुचना मिलने पर गुरु राम दास जी उनके स्वागत के लिए मुख्य द्वार पर आये। गुरु जी को मुख्य द्वार पर देखते ही बाबा श्री चंद जी ने पूछा ” इतनी लम्बी दाढ़ी क्यों रखी हुई है।” तो गुरु राम दास जी ने बूढ़े हो चुके बाबा श्री चंद जी महाराज के आगे नतमस्तक होकर कहा “महाराज यह लम्बी दाढ़ी आप जैसे महा पुरुषों और संतों के पैर साफ़ करने के लिए रखी हुई है।” और गुरु जी ने बाबा श्री चंद जी के पैर अपनी लम्बी दाढ़ी से साफ़ करने शुरू कर दिए।

=> इस घटना से बाबा श्री चंद जी को एहसास हुआ की, गुरु नानक देव जी ने उन्हें गुरुगद्दी क्यों नहीं दी और इस गुरुगद्दी के लिए गुरु राम दास जी ही योग्य क्यों है ? गुरु राम दास जी ने बाबा श्री चंद जी के माध्यम से उदासी के विभिन्न संप्रदायों के साथ मेल-मिलाप भी किया।

=> 1576 में गुरु बनने के बाद गुरु राम दास जी की बादशाह अकबर से मुलाकात हुई।

=> गुरु अमर दास जी ने अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले गुरु राम दास जी से गाँव तुंग, गिलवाली ( सुल्तान ) और गुमटाला तीनों गाँव के बीच जंगल में एक सरोवर बनाने का काम दिया था। गुरु राम दास जी ने तीनों गाँव के जमीदारों से सिखों के दान से 700 रूपये में जमीन खरीदी और “संतोखसर सरोवर” की खुदाई शुरू की। संतोखसर नाम “संतखा” साधु के नाम पर रखा गया जो इस स्थान पहले तपस्या करता था। यहाँ पर अब संतोखसर सरोवर व “गुरुद्वारा श्री संतोखसर साहिब” बना हुआ है।

गुरुद्वारा संतोखसर साहिब, अमृतसर
गुरुद्वारा संतोखसर साहिब, अमृतसर

=> 1577 में गुरु राम दास जी ने तुंग, गिलवाली और गुमटाला गांवों के जमींदारों से “गुरु का चक्क” बसाने के लिए जमीन खरीदी। कुछ मान्यताओं के अनुसार यह 500 बीघा जमीन गुरु अमर दास जी की बेटी बीबी भानी जी के विवाह के उप्लक्ष में बादशाह अकबर द्वारा गिफ्ट ( दान ) में दी गई थी।

=> 1577 में ही गुरु राम दास जी ने संतोखसर सरोवर का काम कुछ समय के लिए रोक कर “दुःख भंजनी बेरी” के पास एक तालाब “अमृतसर सरोवर” की खुदाई का काम “भाई साहलो जी” और “बाबा बूढ़ा जी” की देख-रेख में शुरू किया। बाद में गुरु अर्जुन देव जी ने संतोखसर व अमृतसर सरोवर की खुदाई का अधूरा काम बाबा बूढ़ा जी की देख रेख में पूरा किया गया। संतोखसर का निर्माण 1589 में पूरा हुआ।

=> गुरु राम दास जी ने “गुरु का चक्क” में लोगों को बसाना शुरू किया। इसके लिए गुरु जी ने भिन्न-भिन्न व्यवसाय के व्यापारियों को गुरु का चक्क में आकर व्यापार करने के लिए बुलाया।

=> गुरु का चक्क में सिख गुरु के दर्शनों के लिए दूर-दराज से जो लोग आते थे, तो गुरु होने पर भी गुरु राम दास जी शाम को साधारण कपड़े पहन कर दूर से आये लोगों के पैर धोते थे। सुबह जब वह लोग गुरु जी को सामने तख़्त पर बैठा देखते तो हैरान रह जाते की शाम को जो उनके पैर धो रहा था, वही गुरु राम दास जी है।

=> अमृतसर में “अमृत सरोवर और हरिमंदिर साहिब” तीर्थस्थल के निर्माण में वित्तीय पोषण के लिए गुरु राम दास जी ने गुरु अमर दास जी द्वारा चलाई गई “मंजी प्रथा” के स्थान पर “मसंद प्रथा” चलाई। मसंद प्रथा में मसंद का काम था सिखों से दसवंध/दसोंट या अपनी ईमानदारी की मेहनत का दसवां हिस्सा दान करने के लिए कहना और सिखों द्वारा दान में दिए गए उस दसवन्ध को अमृतसर पहुँचाना।

हरमंदिर साहिब,( Golden Temple ) अमृतसर
हरिमंदिर साहिब,( Golden Temple ) अमृतसर

=> आनंद कारज ( सिख विवाह समारोह ) में चार शब्द ( पवित्र भजन ) है। जिसे “लावां” कहा जाता है। यह सिख विवाह समारोह का केंद्रीय हिस्सा बनते है। इन चार लावांओं ( चार फेरे ) को सिख गुरु राम दास जी ने लिखा है। गुरु ग्रन्थ साहिब में इन पवित्र चार भजनों/लावांओं को “अंग 773-774” में अंकित किया गया है। गुरु राम दास जी ने चार लावांओं की रचना करके सिख धर्म को एक कदम और मजबूत किया और सिखों को सलाह दी कि वे अपने बच्चों की शादी के लिए उन्हें पढ़ें। इस प्रकार उन्होंने हिंदू की वेदी प्रणाली के बजाय सिख धर्म पर आधारित एक नई विवाह प्रणाली शुरू की।

=> गुरु राम दास जी ने अंध-विश्वास और जाति व्यवस्था की कड़ी निंदा की।

=> 1579 में गुरु राम दास जी के लाहौर निवासी चचेरे भाई “सेहरी मल” के बेटे की शादी में अपने सबसे छोटे बेटे अर्जुन देव जी को लाहौर भेजा। पृथ्वी चंद के धोखे के कारण अर्जुन देव जी के पत्र गुरु राम दास जी तक नहीं पहुँचे। जब गुरु जी को पता चला तो उन्होंने बाबा बूढ़ा जी को लाहौर भेज कर अर्जुन देव जी को ससम्मान वापिस बुलाया। ( इस घटना का विस्तृत वर्णन गुरु अर्जुन देव जी के पेज पर पढ़ें )

=> गुरु राम दास जी सिख धर्म के दस गुरुओं में से एकमात्र सिख गुरु है, जिन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपने पुत्र ( पृथ्वी चंद ) की निंदा की।

=> 1581 में अपने स्वर्गवास ( मृत्यु ) से कुछ दिन पहले गुरु राम दास जी ने अपने सबसे छोटे पुत्र अर्जुन देव जी को गुर-गद्दी देकर अमृतसर से गोइंदवाल आकर रहने लग गए।

=> अमृतसर छोड़कर गोइंदवाल साहिब आने के कुछ दिनों के बाद गोइंदवाल में गुरुद्वारा श्री चौबारा साहिब में 1 सितम्बर, 1581 को गुरु राम दास जी का स्वर्गवास हो गया।

गुरुद्वारा श्री चौबारा साहिब”, गोइंदवाल साहिब
गुरुद्वारा श्री चौबारा साहिब”, गोइंदवाल साहिब

=> गुरु राम दास जी लगभग 47 साल जीवित रहे और उसमें से 7 साल गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।

=> 9 अप्रैल, 1598 को गुरु राम दास जी की पत्नी माता भानी जी का गोइंदवाल में देहांत हो गया।

=> गुरु राम दास जी की वाणी 30 रागों में 638 शब्द/भजन लिखे, जिनमें 246 पद्य, 138 श्लोक, 31 अष्टपदी और 8 वार शामिल हैं और ये वाणी गुरु ग्रंथ साहिब में अंकित हैंगुरु राम दास जी की सबसे महत्वपूर्ण वाणी “चार पवित्र शब्द/भजन” है, जिन्हें “लावां” कहा जाता है। जो गुरु ग्रन्थ साहिब में “अंग 773-774” में अंकित हैं।

 

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